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सैकड़ो वर्ष पहले पीलीभीत-टनकपुर रेलमार्ग नहीं था तथा पर्वतीय क्षेत्र में जाने वाला सड़क मार्ग भी नहीं था। उस समय नेपाल के लोग शार दा नदीको पार कर के टनकपुर के घाड़ी भाँवर के पैदल रास्ते से काशीपुर मण्डी मे फरुखावादी कपड़े और अन्य उपभोग्य सर-सामान खरीदने के लिये जाया करते थे और महिनों लगाकर पहाड़ों के गाँवों में पहुंचा करते थे। कशपुरिया व्यापारी वर्ग पहाड़ों मे रकम वसूल करने के लिये प्रति वर्ष जाया करते थे ।

कालान्तर मे माता पूर्णागिरी की कृपा से टनकपुर मण्डी का वृहत रूप में विकास होता गया और रेलमार्ग तथा सड़क मार्ग की भी सुविधा हो जाने से जनता में सुविधा की लहर फैल गई किन्तु सुदूरपश्चिम नेपाल के पश्चिमी सीमावर्ती क्षेत्र ब्रह्मदेव के राज्य में कोई मण्डी या बाजार की सुविधा न होने के कारण जनता बहुत ही दुःखी थी । राजा ब्रह्मदेव के राज्य सल्लाहकार एवं मन्त्रीगण आदि के राय परामर्श मुताबिक कही समथर मैदानी जगह में मण्डी बनाने की अनिवार्यता पर मोहर लगा दी और जगह की तलाश होने लगी । सिद्ध बाबा के मूल स्थान त्रिशूल के नीचे खल्ला के नजदीक ब्रह्मदेव बाजार (मण्डी) बसाया गया और शारदा नदी मे वार पार करने के लिये नावों का प्रबन्ध किया गया । ब्रह्मदेव बाजार जो कि राजा ब्रह्मदेव के ही नाम से बसाया गया, जिसे आजकल पुरानी ब्रह्मदेव मण्डी कहते है।

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