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पाली पोछाऊ, कत्यूरी राजाओं के प्राचीन राजधानी लखनपुर क्षेत्र सूक्ष्म भौगोलिक एवं धार्मिक प्रशासनिक जानकारी
कुमाऊँ की सत्ता का ऐतिहासिक केंद्र रहा है पाली-पछाऊं
विराटनगर का भौगोलिक वर्णन हमें जानना जरूरी है यह क्षेत्र जौरासी ,द्रोणागिरी ,मांनिला ,
नागार्जुन,गुजडु, का डाना आदि प्रमुख पर्वतों से घिरा है नदियां रामगंगा गगास विनोद नदी प्रमुख हैं,
रामगंगा जिसको शास्त्रों में रथवाहनी कहा गया है ,गढ़वाल के दिवालीखाल से निकलती है और विनोद नदी गढ़वाल के दुधातोली क्षेत्र के बिंद्रेश्वर से निकलती है बूढ़ा केदार में रामगंगा नदी से इसका संगम होता है, तथा गगास नदी भटकोटसे निकलती है और बिन्ता,बासुलीसेरा शिलोरघाटी होते हुए भिकियासेन में रामगंगा नदी में उसका मिलन होता है वहां पर एक प्राचीन शिव मंदिर भी है जो ग्राम सभा सबोली रौतेला में आता है,

प्रमुख मंदिर बुढ़केदार विमानडेस्वर, चित्रेश्वर ,श्रीनाथेसर नारायण नागार्जुन ,बदरीनाथ विष्णु शीतला, दूनागिरी में मां वैष्णो देवी, का मंदिर मां कैला देवी ,नैथणा देवी, अग्निदेवी (अगनेरी मंदिर कत्यूरी राजाओं की कुलदेवी)देघाट में भगवती मंदिर टामाढौन में राजा सारंगदेव द्वारा निर्मित तामलीदेवी मंदिर, तालेश्वर का शिव मंदिर है डिमांडेश्वर मंदिर का जीर्णोद्धार आदि गुरु शंकराचार्य ने कराया ऐसी मान्यता है और द्वाराहाट के मंदिर समूह जिनमें केदारनाथ बद्रीनाथ चंडीसर मंदिरों की स्थापना कत्यूरी राजाओं ने किया श्री बद्रीनाथ मंदिर के मूर्ति के नीचे 1105 संवत लिखा है जो लगभग 965 वर्ष पुराना है और द्वाराहाट मैं लगभग 65 देवालय एवं बावडिया है जिनमें कई मंदिर टूट फूट गए हैं जिन्हें 17 वी शताब्दी में रोहिलखंड के मल्लेछ लुटेरे लोगों ने नुकसान पहुंचाया था इसमें गुर्जर देव का मंदिर भी सम्मिलित है और एक गणेश मंदिर भी है ,जिसमें संवत 1103 साके अंकित है वहीं पर एक जगह *थर्प* यानी बड़ा सा चबूतरा है जहां वहां पर कत्यूरी राजा न्याय के आसन में बैठकर राजकाज करते थे ऐसी मान्यता है और चंद्रगिरी व, चाचरी पर्वत पर इनका राजमहल था,
दूनागिरी मंदिर भी कत्यूरी राजाओं ने बनाया मंदिर का निर्माण 1105 शाके माना गया है,
द्वाराहाट की ऊंचाई लगभग 5031 फिट है यहां का नजर बाजार काफी पुराना है कत्यूरी राजाओं की एक शाखा यहां पर राज्य करती थी, यहां के लोग बहुत होशियार और चालाक होते हैं कहावत है यहां का बैल भी होशियार होता है, वैशाख के विश्वत संक्रांत के दिन यहां पर बहुत बड़ा मेला लगता है जिसको बगवाल भी कहते हैं, बग्वालीपोखर मैं भी कार्तिक पूर्णमासी के दिन बगवाल
कहते हैं कि द्वाराहाट में देवता लोग द्वारिका बनाना चाहते थे और इस स्थान पर कोशी और राम गंगा का संगम ने होना था और गगास नदी के तरफ से रामगंगा नदी के पास खबर देने गेवार मैं छाना गांव एक सेमल के पेड़ को दिया गया था परंतु रामगंगा नदी के द्वाराहाट लौटते समय वहां सेमल का पेड़ सो गया था और संदेशा रामगंगा नदी तक नहीं पहुंच पाई जिस कारण द्वाराहाट में द्वारका नहीं बन पाई और दूसरी कहावत यह भी है रामगंगा नदी तो द्वाराहाट आई पर कोसी नहीं आई,

उसके बाद राम गंगा नदी वापस तल्ला गेवाड के तरफ को चली गई,

दूनागिरी पर्वत का निर्माण जब हनुमान जी द्रोण पर्वत को ले जा रहे थे ,उसका एक टुकड़ा इस क्षेत्र में गिरा तब दूनागिरी पर्वत का निर्माण हुआ ,ऐसी कहावत है इस पर्वत में पारस पत्थर है, एक बार घास काटने गई औरत की दराती उस पत्थर से टकराई ,और वह दराती सोने की बन गई थी,
इसी क्षेत्र में ईड़ा बाराखंबा का विश्रामाँँलय भी देखने योग्य है,

लखनपुर राजधानी क्षेत्र गिवाड़ ,में चार पट्टीहै। 1,कौथलाड,2खतसार,3,गाडी,4,गेवाड, गाड़ी में तड़ागताल काफी बड़ी झील है जो गर्मी में सूख जाती है और बरसात में भरा रहता है उत्तराखंड सरकार को चाहिए इसको विकसित कर पर्यटक स्थल बनाएं,
लखनपुर के उत्तर में गढ़वाल क्षेत्र में लोहबागड़ी है ,यहां पर पहले बहुत विशाल किला था जो कुमाऊं और गढ़वाल की सरहद कहलाती थी ,
कत्यूर पट्टी और पाली के बीच गाड़ी गेवाड़ के ऊपर गोपालकोट पर्वत पर भी कत्यूरी राजाओं का किला था ,जहां पर इनकी फौज रहती थी अब यह टूटा फूटा है
गेवाड़ के ग्राम कोटियुडा मैं तांबे की खान प्रसिद्ध है ,और खतसारी सिरौली ,कलीरो, रामपुर ,गोड़ी बरलगांव ,चितेली मैं लोहे की खान है ,अभी भी यहां पर पुरानी लोहे को गलाने की भट्टी देखने को मिल जाएंगी,
लखनपुर के किले के ऊपर जौरासी के पास असुरकोट किला है जो चौकोट के ग्राम सभा टिटरी के अंतर्गत आता है कहावत है यहां पर पहले असुर जाति का किला था, इस किले के तलहटी विनोद नदी के किनारे के तरफ के गांव को असुरफाट भी कहते हैं,
प्राचीन काल में लखनपुर क्षेत्र में बहुत बड़ा पुराना नगर था यहां पर प्राचीन ईट भी मिलती है इस जगह को बैराठ नगर कहते थे जहां पर राजमाता जिया रानी का महल है (लखनपुर जिसको आसन वासन सिहासन कहते हैं) वह चक्रोत पहाड़ी के ऊपर है वहीं पर रामगंगा नदी के किनारे कीचकघाट भी है, यहां पर कत्यूरी लोग स्नान करने के लिए जाते हैं इसकी महत्ता गोला नदी के स्नान और गंगा नदी के स्नान के बराबर है,
और इसी स्थान को कत्युरी राजा आसंती देव बासंती देव का राजस्थान है, रामगंगा नदी के किनारे मासी केदार बसेड़ी नौला भिकियासेन क्षेत्र काफी गर्म घाटियां है ,भिकियासेन में शिवरात्रि में मेला लगता है, मासी में सोमनाथ का मेला और केदार में कार्तिक पूर्णमासी के दिन गंगा स्नान का मेला, तथा नोला में गंगा दशहरे के दिन मेला लगता है, जहां पर दूर-दूर के व्यापारी अपने समान कृषि यंत्र और राज्स्थापना काल में काल में हथियार ढोल नगाड़े रणसिंघा आदि सामान बिकने आते थे,

सल्ट क्षेत्र 4 पट्टी हैं मां मानिला देवी का मंदिर तथा सैणमानुर, गांव जिसको मानारदेश की राजधानी भी कह सकते हैं, जो कत्यूरी वंश के राजा वीरम देव बसाया था, इसका काल संवत 1475 के करीब माना जाता है ,यह क्षेत्र काफी सुंदर और रमणीक, है हिमालय के बिंघम दृष्ट के दर्शन भी यहां से होते हैं यहां पर घने जंगल है जिनमें देवदार बांज के पेड़ और चीड़ के वृक्ष प्रमुख हैं जो इस क्षेत्र की सुंदरता में चार चांद लगाते हैं,
कहावत है ,यहां के किले के अंदर कोट से(सैणमानुर ) से रामगंगा नदी तक सुरंग थी, अब इस किले के अंदर इन राजाओं के वंशज मनराल लोग रहते हैं ,
यह क्षेत्र नैनीताल जिले के कोसी नदी के किनारे तक रामनगर के मोहान क्षेत्र तक फैला है और यही कत्यूरी राजवंश के राजाओं की शीतकालीन राजधानी जिसका नाम भी विराटनगर और रामनगर का लखनपुर भी कत्यूरी लोगों का बसाया हुआ है ,शीतकाल में पाली क्षेत्र के पशुपालक अपने पशुओं को लेकर इस क्षेत्र में चले जाते हैं ,
पाली के पश्चिम की ओर की ओर चौकोट पट्टी जो तीन पट्टीओं में विभाजित है यहां पर गढ़वाल सीमा पर तालेश्वर गांव में पांचवी शताब्दी का शिव मंदिर है जो बर्मन राजाओं द्वारा बनाया गया है इसके ताम्रपत्र भी है, यहां पर शिवरात्रि का मेला लगता है, और देघाट के उत्तर में चमोली गढ़वाल के बॉर्डर पर जहां पर लोहबागड़ी क्षेत्र है उस क्षेत्र को वर्तमान में नागचूला खाल कहते हैं जो पाली क्षेत्र का आखिरी गांव है, वहां पर दुर्गादेवी (दुर्गद्यो) का मंदिर है वहां पर भी भाद्र पक्ष में एक गते को मेला लगता है, देघाट में प्राचीन भगवती का मंदिर है वहां पर पहले बलि प्रथा होती थी चैत्रा अष्टमी के दिन, विशाल मेला लगता है परंतु वर्तमान में बलि प्रथा समाप्त होने के उपरांत मेले में बहुत कम भीड़ होती है, यह स्थान कुमाऊं और गढ़वाल का व्यापारिक केंद्र भी है,
बिचला चौकोट के गढ़वाल बॉर्डर की तरफ जूनियागड़ी पर्वत के ऊपर पहले बहुत विशाल किला था, अभी भी उसके अवशेष वहां पर हैं, बाद में गोरखा लोगों ने भी वहां पर अपने सैनिक रखें ,उसको लखरकोटभी कहते हैं गढ़वाल एवं कुमाऊँ के सीमा पर पर मां कालिका का प्राचीन मंदिर है जहां पर काफी बड़ा मेला लगता है इस क्षेत्र की बोली भाषा गढ़वाली है परंतु यह क्षेत्र जनपद अल्मोड़ा में आता है
,सल्ट क्षेत्र का एक ऊंचा पर्वत गुर्जरगढ़ी है उसमें भी कुमाऊं और गढ़वाल के राजाओं की कई बार युद्ध हुआ ,अब यह विरान पड़ा हुआ है,
पाली गाव के ऊपर नैथना मैं भी प्राचीन किला है , जिसके अवशेष यत्र तत्र बिखर गए हैं, उसको नैथणागडीभी कहते हैं और पाली में सबसे पुराना स्कूल मिडिल स्कूल था, जहां पर गढ़वाल गेवाड चौकोट भिकियासेन मनीला तक के छात्र पढ़ने आते थे वर्तमान में अब वह इंटर कॉलेज बन गया है उस जमाने में द्वाराहाट में भी कॉलेज नहीं था,
अंत में रानीखेत क्षेत्र जो अब पाली की राजधानी है जो अंग्रेजों ने 1869 में बनाई यहां पर कुमाऊँ रेजीमेंट सेंटर है और रानीखेत का नाम कत्यूरी राजा सुधार देव की रानी पद्मावती के नाम से पड़ा यहां पर झूला देवी का प्राचीन मंदिर है,

इसके अतिरिक्त फलदाकोट तारीखेत शी
शिलोर घाटी कुजगढ़ नदी के किनारे मिनी कत्यूर घाटी नाम से प्रसिद्ध क्षेत्र है ,यहां पर कुजगढ़ नदी के किनारे तिपोला नामक स्थान पर बोकडिया महादेव शिव मंदिर काफी प्राचीन है इस स्थान पर कत्युरी समय के बहुत से मूर्तियां वीरखम हैं राजमाता जिया रानी का भी मंदिर यहां पर है,

राजमाता जिया रानी ने रानी बाग गोला स्नान जाते समय इसी स्थान पर अपने कटार जमीन के जमीन में गाड़ कर अपने सैनिकों की प्यास बुझाने के लिए जलधारा प्रकट कराई थी ,जागर गाथाओं में इसका वर्णन वीर रस में गाया जाता है

पाली क्षेत्र में कत्यूरी राजाओं के बंसज यत्र तत्र फैले हुए हैं
यहां के ऐतिहासिक धरोहरों राष्ट्रीय एवं वैश्विक स्तर पर प्रचार करने की जरूरत है, सरकार को इनके डेवलपमेंट की ओर ध्यान देना चाहिए जिससे हमारे गौरव के प्रतिक यह धरोहर सुरक्षित रह सके,

चंदन सिंह मनराल

राजमाता जिया रानी को समर्पित👏

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